मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

भोपाल ! सृष्टि ने मानव और मानवता के लिए संसार बसाया, उसके जीवन यापन के लिए जीव-जंतु कहीं समुद्र-नदिया कहीं झरना बनाया, कहीं रेगिस्तान तो कहीं सुंदरता बिखेरता बर्फीला पहाड़ बनाया तो कहीं शुष्क क्षेत्र में भी जीवन बसाया ! मनुष्य के जीवन में अनुशासन-शांति-व्यवस्था केसे बहाल रहे इसके लिए दूत, संत और महा-पुरुषों को भी पहुंचाया ! कहते हैं ही नहीं जिस दो पग-प्राणी से पूछ लो उसकी आस्था अटूट विश्वास है कि ईश्वर के आदेश के बिना पत्ता नहीं हिलता, और एक न एक दिन प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु निश्चित है, तो फिर सृष्टि के मानवीय संदेश के विरुद्ध दबंगाई जात-पात को लेकर अत्याचार, रंगभेद, भाषाएं, क्षेत्रीय सत्ता-सुख राजपाठ के लिए स्वार्थ के अंधों ने बिन जात-पात, रक्त-रंजिश लोकतंत्र बहाल रहे ऐसा हो ही नहीं सकता ! स्वार्थों के आगे सत्ता-सिहासन एक खूनी विरासत के बिना अधूरा कैसे रहे .....  असंभव !
          संसार तीसरे विश्वयुद्ध की ओर बढ़ रहा है ! हथियारों की बिक्री के लिए दो देशों को आपस में लड़ाया फिर दोनों को अलग-अलग मार्गो से हथियारों का जखीरा पहुंचाया, पेट्रोल के भंडारों पर कब्जा करने के लिए मानवीय अत्याचार का बहाना बनाया शांति सेनाओं से बम गिरवा कर आबादी को उजाड़ दिया !
          कहीं मची है धर्म की प्रतिद्वंदिता, मानवीय नरसंहार कर, खूनी लाशों को रौंदकर इतिहास अपने नाम लिखा दिया ! ईश्वर, भगवान, अल्लाह कहो, वाहेगुरू या कहो गाड कौन सा इंसान बना दिया दिखता तो वही दो पग वाला प्राणी जो तुमने पहले बनाया था अब यह कैसी खराबी आ गई मशीन में, क्या मनुष्य किया अंदर ही जानवर बना दिया, यह शीश झुकाता तो तेरे आगे पर धर्म का पालन कर्ता नहीं मानवता के लिए, स्वार्थों की खातिर धर्म को व्यापार बना लिया ! भौतिक उलझनों में कौन सा व्यक्ति पड़ता है ? वह जो जीवन की समस्याओं को नहीं समझता, जीवन को नहीं समझता ! जो यह नहीं समझता कि, जीवन के लिए आखिर साध्य क्या है ? बृहदारण्यक उपनिषद् में (३.८.१०) ऐसे व्याकुल (व्यग्र) मनुष्य का वर्णन इस प्रकार हुआ है–यो वा एतदक्षरंगार्ग्यविदित्वास्माँल्लोकात्प्रैतिसकृपण :– “कृपण या मूर्ख मनुष्य वह है जो मानव जीवन की समस्याओं को हल नहीं करता और आत्म-साक्षात्कार के विज्ञान को समझे बिना कूकर-सूकर की भाँति संसार को त्यागकर चला जाता है !” जीव के लिए मनुष्य जीवन अत्यन्त मूल्यवान निधि है, जिसका उपयोग वह अपने जीवन की समस्याओं को हल करने में कर सकता है, अतः जो इस अवसर का लाभ नहीं उठाता वह कृपण और निरा मूर्ख है ! इसके विपरीत होता है जो इस शरीर का उपयोग जीवन की समस्त समस्याओं को हल करने में करता है वह योगी है ! देहात्म बुद्धि वश कृपण या मूर्ख लोग अपना सारा समय परिवार आदि के अत्यधिक मोह में गवाँ देते हैं ! मनुष्य प्राय: मूर्खतावश ही अपने पारिवारिक जीवन अर्थात् पत्नी, बच्चों तथा परिजनों में आसक्त रहता है ! कृपण या मूर्ख यह सोचता है कि वह अपने परिवार को मृत्यु से बचा सकता है अथवा वह यह सोचता है कि उसका परिवार या समाज उसे मृत्यु से बचा सकते है ! ऐसी आसक्ति निम्न पशुओं में भी पाई जाती है, क्योंकि वे भी बच्चों की देखभाल करते हैं !
          धर्म के नाम देश व मनुष्य को बांटा उन स्वार्थी सत्ता के दलालों ने, अभी देखो पाट रहे हैं हम को अपनी मायावी जंजालों में, अपने स्वार्थों की खातिर खोल रखी है आंतकवादियों की पाठशाला, सेना या आतंकवादी मरे मरता तो इंसान है ! जो अपने परिश्रम से पेट भरता मनुष्य-जाति का वह अन्नदाता फांसी लगाता है, अधर्मी-कुकर्मी अपने अस्तित्व के लिए षड्यंत्र रच कर सत्ता का दुरूपयोग कर पुलिस-सेना को फंसाता-मरवाता है !
          चलो वीर तुम बढ़े चलो, धर्म जाति के नाम पर यह खून खराबा बंद करवाना है ! स्वतंत्रता के पूर्व के अस्तित्व को पाकर, भारतीय तिरंगा लहराना है !
                          "अब तो वैचारिक द्वंद हैं "
                      @मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)